Saturday, March 7, 2020

SHANKARACHARYA SANDESH

अनन्तश्री विभूषित ऋग्वेदिय पूर्वाम्नाय गोवर्धनमठ पुरीपीठाधिश्वर श्रीमज्जगदगुरु शंकराचार्य भगवान के अमृतवचन ।
विषय :- भौतिकतावादियों के जीवन की निरर्थकता :-
भौतिकता की धारा में बहने वाला जितन‍ा विश्व है उनको हम संकेत करते हैं । आपके पास क्या कोई एेसी विधा है कि प्रवृत्ति के गर्भ से आप निवृत्ति निकाल सकें ? आजकल है क्या ? कोई भौतिकवादी ह्रदय पर हाथ रख कर बता दे कि उसने जो प्रवृत्ति को ‍आरंभ किया उसक‍‍ा पर्यवसान निवृत्ति में हो सकत‍ा है ? मनुजी की एक बात को भी काटकर सुरक्षित नहीं रह सकते । " निवृत्तिस्तु महाफला: " मनुस्मृति का उदघोष है । एक वचन मैंने पढ़ा था " महायंत्र प्रवर्तनम " अर्थात उत्पातक है , विश्व का अगर विनाश करन‍ा हो तो महायंत्रो का प्रचुर आविष्कार और उपयोग किजिये ।
हम संकेत करते हैं जितने प्रवृत्तिवादी हैं , एक भी भौतिकवादी है क्या वो बता सकते हैं की जो प्रवृत्ति उन्होंने प्रारम्भ की है उसके गर्भ से निवृत्ति निकल सकती है ? जिस गति का पर्यवसान स्थिति में न हो गन्तव्य तक पहुंचाने में जो गति समर्थ ना हो उस गति की सार्थकता मानी जायेगी या निर्थकता ? आज जिस ढंग से प्रवृत्ति को अपनाते हैं व्यक्ति उस प्रवृत्ति के गर्भ से कभी एक अरब वर्ष में भी निवृत्ति निकल सकती है क्या ? तो प्रवृत्ति व्यर्थ गई या नहीं ? पूरे विश्व को विकास के नाम पर क्या किया जा रहा है निरर्थक सिद्ध किया जा रहा है जितने मनुष्य हैं सब के जीवन को व्यर्थ सिद्ध करने वाला भौतिकवाद है।
भौतिकवादियों को तो पञ्चभूतों का भी ज्ञान नहीं होता । कोई भी भौतिकवादी क्या यह कह सकता है की उनकी प्रवृत्ति के गर्भ से निवृत्ति निकल आयेगी ? अगर प्रवृत्ति का पर्यवसान निवृत्ति में नहीं है तो उसकी सार्थकता कैसे मानी जायेगी ?" निवृत्तिस्तु महाफला:" अगर मुझसे पूछें की समग्र वैदिक वांगमय का अनुशीलन करके एक वाक्य में उसका सारांश क्या निकला जा सकता है तो मैं यही कहूंगा डण्के की चोट से आह्लादपूर्वक - " प्रवृत्ति का पर्यवसान निवृत्ति में हो तब प्रवृत्ति की सार्थकता है ओर निवृत्ति का पर्यवसान निर्वृति ( परमानन्द स्वरुपा मुक्ति की समुपलब्धि ) में हो तब निवृत्ति की सार्थकता है " । पूरे वैदिक वांगमय का सारांश गुरुओं की कृपा से मैंने आपको एक वाक्य में बता दिया ।
पूरा विश्व जितने मनुष्य हैं अपवाद को छोड़ दिजिये जो भौतिकता की धारा में बहते हैं उनका जीवन इसिलिये व्यर्थ क्योंकि उनकी प्रवृत्ति के गर्भ से एक अरब कल्प में भी कभी निवृत्ति नहीं निकल सकती है तो सारी प्रवृत्ति व्यर्थ हो गई य‍ा नहीं । इसका मतलब जीवन के साथ खिलवाड़ विज्ञान के नाम पर विकास के नाम पर । वेद विहिन विज्ञान के द्वारा जीवन कभी भी सार्थक नहीं हो सकता ।
भौतिकवादियों पर पहला प्रहार है -
१. ) तुम प्रवृत्ति अपनाते जाओ तुम्हारी प्रवृत्ति के गर्भ से कभी निवृत्ति नहीं निकलेगी अत: तुम्हारा पूरा जीवन व्यर्थ । जो करना था कर नहीं पाये ।
२.) प्रवृत्ति के बाद आप कहेंगें " प्राप्ति " बंटोरते जाओ , बंटोरते जाओ सिकंदर के समान कब्रिस्तान खुदवा खुदवा के हीरे जवाहरात इक्क्ठे करते जाओ लेकिन अंत में हाय जो पाना था वो पा ना सका । प्राप्ति का कभी अंत नहीं होता ।
३.) तीसरा शाप क्या है - विश्व में जितने विश्वविद्यालय हैं सबके विद्या और कला को एक जन्म में प्राप्त कर लो कोई फिर भी हृदय पर हाथ रखकर यह नहीं कह सकता है कि जो जानना था जान चुका मेरा कुछ जानना शेष नहीं , जो करना था कर चुका मेरा कुछ करना शेष नहीं है , जो पाना था पा चुका मेरा कुछ पाना शेष नहीं है ।
लेकिन आध्यात्म निष्ठ क्या कह सकता है की आध्यात्मविद्या को अपना लिजिये तो इसी जन्म में जानना , करना , पाना है वो पूरा हो जायेगा । इसीलिये हमने संकेत किया सज्जनों प्रवृत्ति को निवृत्ति बनाने कि विधा ही भौतिकवादियों के पास नहीं है ।
हर हर महादेव ।

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