साइंस पढ़े हुए लोग जाति या वर्ण की व्यवस्था इस प्रकार समझें कि जैसे स्वर्ण, रजत और ताम्र आदि 3 धातु 3 गुण सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण हैं।
अब 3 धातुओं से आपने 4 मिश्रण तैयार कर लिया जिसे अंग्रेजी में एलॉय कहते हैं जिसमे 3 धातुओं की मात्रा भिन्न भिन्न हैं। अब जिसमे स्वर्ण की मात्रा सबसे अधिक होगी वो ही मिश्रण सबसे मूल्यवान होगा। मान लीजिए 4 मिश्रण A,B,C और D हैं।
यही नियम वर्ण व्यवस्था में हैं जिसमे सतोगुण सबसे अधिक होता है वो होता ब्राह्मण और जिसमे सबसे कम वो शुद्र और मध्य क्षत्रिय और वैश्य आदि।
तो अब आप स्वयं सोचिये कि यदि आप किसी भी दो मिश्रण को मिलाकर कोई नई वस्तु बना दें तो जो नई वस्तु बनेगी वो मिलाए हुए किस मिश्रण के समान होगी तो उत्तर है किसी के नही वो एक स्वतन्त्र मिश्रण हो जाएगी क्योंकि नए मिश्रण में मूल तीनो धातुओं की मात्राएँ बदल जायेंगे।
उदाहरण के लिए A और B को मिला दिया तो जो नया बनेगा वो न A होगा और न B होगा ये एक अलग ही नयी मिश्रण तैयार हो जाएगी जिसे E कह सकते हैं क्योंकि इसमें सोने, चांदी और ताम्बे की मात्राएँ A और B से अलग भिन्न भिन्न हो जाएगी।
पर यदि आप किसी एक मूल मिश्रण से ही कोई वस्तु बनाते हैं तो आप उसी शुद्ध मिश्रण के कहलायेंगे। जैसे A मिश्रण से कोई वस्तु बनाते हैं बिना कुछ मिलाए तो वो A ही कहलायेगा।
यही नियम है वर्ण व्यवस्था में।
यह संसार त्रिगुणात्मक हैं
इन्ही 3 गुणों से मनुष्य भी बना जिसमे सबसे पहले 4 जातियाँ ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र ईश्वर द्वारा बनाया गया जिन्हें वर्ण भी कहते हैं। गीता में भगवान् ने स्वयं कहा कि ये चारों वर्ण उन्होंने स्वयं बनाये हैं।
अब इन जातियों को मिश्रित संतान उत्पन्न करने की मनाही है पर कुछ लोग नही माने और मिश्रित संतान उत्पन्न करते गए जिससे नई नई जातियाँ बनती गयी। यहाँ तक कि सन्यास ले चुके या साधु बन चुके लोगों ने भी काम के वशीभूत होकर संतान उत्पन्न कर दिए जिससे और भी नई जातियाँ बन गयी।
आज कलयुग आते आते हजारों जातियाँ हैं जो इन्ही मूल चार जातियों के कुछ लोगों ने उत्पन्न कर दी हैं।
सनातन धर्म वास्तव में इन्ही चार मूल ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र जातियों में विभक्त हैं।
भारत की समृद्धि का मूल भी यह जाति व्यवस्था ही रही है जब जब नई उत्पत्ति हो गयी तब तब हमारे पूर्वजों ने उसे एक नयी स्वतन्त्र जाति बनाकर, उस जाति को एक जन्मना कार्य देकर जाति व्यवस्था को बचाये रखने का प्रयास किया। पर अंग्रेजों ने आर्य समाज, इस्कान, ब्रह्म समाज, राम कृष्ण मिशन, आरएसएस जैसे तमाम संगठन बनाकर धर्म अध्यात्म, वेद, योग आदि के नाम पर वर्ण अथवा जाति की व्यवस्था को नष्ट करने लगे। आज परिणाम यह है कि इतना ज्यादा मिश्रण हो गया कि कुछ पता ही नही है कि कौन कितने पीढ़ी पहले क्या था?
ईसाई और मुसलमान कभी न कभी किसी 4 वर्ण में रहने वाले सनातन धर्मी ही होंगे पर वो हजारों वर्ष पूर्व सनातनधर्म छोड़ दिये और वर्ण अथवा जाति की पहचान को ही मिटा दिए। अब यदि उनमें से कोई सनातनधर्म के अनुसार जीवन जीना चाहता है तो बिल्कुल जी सकता है पर उसकी जाति किसी चार मूल जाति तो छोड़िए उनके द्वारा मिश्रित होकर बने अन्य स्वतंत्र जातियों में भी नही गिनी जा सकती।
सब कलयुग का प्रभाव है कलयुग में वर्ण और जाति तो नष्ट होने ही हैं पर भगवान् की यह भी प्रतिज्ञा है कि मूल बीज को नष्ट नही होने देंगे अतः शुद्ध रूप से ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र तो कलयुग के अंत तक रहेंगे ही बीज को नष्ट करने की छमता संसार के किसी नरसिंघानंद मे नही है।
कलयुग में दो जातियों से संतान उत्पन्न करना निषेध है अतः जितने भी विवाह भिन्न भिन्न जातियों में हो रहे हैं वो सब शास्त्र विधि के विरुद्ध होने से अवैध हैं और उनकी संताने भी अवैध संताने कहलाएंगी। हा कोर्ट या संविधान के नियम से भले वैध हो पर धर्मराज यमराज के यहाँ उन्हें अवैध ही माना जायेगा वहाँ तो शास्त्र ही चलता है संविधान नही।
आदि शंकराचार्य भी इसी जाति की व्यवस्था बचाये रखने के लिए निर्देश देकर चले गए क्योंकि जाति धर्म ही स्वधर्म है सनातन धर्म है। गीता में जातिधर्म कुलधर्म को सनातन कहा गया है- जातिधर्माः कुलधर्माश्च शाश्वताः।।
जो लोग वर्ण व्यवस्था को कर्मणा कहते हैं और वर्ण अथवा जाति को नष्ट करने पर लगें है वो सब सनातनधर्म के मूल शत्रु हैं और धर्मरक्षकों के द्वारा वध करने योग्य हैं ये शास्त्रों में ऋषियों का आदेश हैं।
जाति पेट से पैदा हुए बच्चे को मिलती है वो भी तब जब स्त्री पुरुष दोनों एक उसी जाति के हो। किसी मनुष्य को बिना दूसरे जाति में पैदा हुए वो जाति नही मिल सकती। यही सत्य है।
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