Friday, March 13, 2020

नाड़ी दोष का परिहार


नाड़ी दोष का परिहार

एक नक्षत्र जातानां नाड़ी दोषो विद्यते।
अन्यर्क्षपति वेधेषु   विवाहो वर्जित: सदा॥

1. वर एवं कन्या दोनों की नाड़ी एक ही हो नाड़ी दोष हो तो वर एवं कन्या दोनों का जन्म नक्षत्र एक ही होना चाहिये परंतु दोनों के एक  नक्षत्र में चरण अलग-अलग होना चाहिये तो नाड़ी दोष नष्ट हो जाता है॥ 

2. नाड़ी दोष होने की स्थिति में वर एवं कन्या दोनों का  जन्म नक्षत्र एक ही हो परंतु दोनों की जन्म राशि अलग अलग होनी चाहिये तो नाड़ी दोष नष्ट हो जाता है। राशि परिवर्तन सिर्फ कृत्तिका, मृगशिरा, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, चित्रा, विशाखा,उत्तराषाढा, धनिष्ठा, पूर्वाभाद्रपदा इन नक्षत्रों में ही होता है॥



१६ संस्कारों के नाम

व्यासस्मृति में १६ संस्कारों  के नाम इस प्रकार प्राप्त होते हैं:

गर्भाधानं   पुंसवनं   सीमन्तो जातकर्म च।
नामक्रियानिष्क्रमणेSन्नाशनं   वपनक्रिया॥
कर्णवेधो   व्रतादेशो  वेदारम्भक्रियाविधि:
केशान्त:  स्नानमुद्वाहो  विवाहाग्निपरिग्रह॥
त्रेताग्निसंग्रहश्चेति संस्कारा: षोडश स्मृता:

. गर्भाधान . पुंसवन . सीमन्तोन्नयन . जातकर्म  .नामकरण(न्वारन) .निष्क्रमण .अन्नप्राशन (पास्नी) . चूड़ाकरण(छेवर) . कर्णवेध(कान छेड्ने) १०. उपनयन(व्रतबन्ध) ११. वेदारम्भ १२. केशान्त
१३. समावर्तन १४.विवाह(बे) १५.() विवाहाग्निपरिग्रह () त्रेताग्निसंग्रह १६. अन्त्येष्टि (दाह संस्कार)


जाति या वर्ण की व्यवस्था इस प्रकार समझें

 साइंस पढ़े हुए लोग जाति या वर्ण की व्यवस्था इस प्रकार समझें कि जैसे स्वर्ण, रजत और ताम्र आदि 3 धातु 3 गुण सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण हैं। अब 3...