Sunday, March 29, 2020

हिन्दू धर्म की 16 महत्वपूर्ण बातें .......


यह पुण्य प्रवाह हमारा

                                                    हिन्दू धर्म की 16 महत्वपूर्ण बातें ........
१...10 ध्वनियां : 1.घंटी, 2.शंख, 3.बांसुरी, 4.वीणा, 5. मंजीरा, 6.करतल, 7.बीन (पुंगी), 8.ढोल, 9.नगाड़ा और 10.मृदंग
,,,,10 कर्तव्य:- 1. संध्यावंदन, 2. व्रत, 3. तीर्थ, 4. उत्सव, 5. दान, 6. सेवा 7. संस्कार, 8. यज्ञ, 9. वेदपाठ, 10. धर्म प्रचार। आओ जानते हैं इन सभी को विस्तार से।
,,,,10 दिशाएं : दिशाएं 10 होती हैं जिनके नाम और क्रम इस प्रकार हैं- उर्ध्व, ईशान, पूर्व, आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य, पश्चिम, वायव्य, उत्तर और अधो।
४....10 दिग्पाल : 10 दिशाओं के 10 दिग्पाल अर्थात द्वारपाल होते हैं या देवता होते हैं। उर्ध्व के ब्रह्मा, ईशान के शिव व ईश, पूर्व के इंद्र, आग्नेय के अग्नि या वह्रि, दक्षिण के यम, नैऋत्य के नऋति, पश्चिम के वरुण, वायव्य के वायु और मारुत, उत्तर के कुबेर और अधो के अनंत।
५.….10 देवीय आत्मा : 1.कामधेनु गाय, 2.गरुढ़, 3.संपाति-जटायु, 4.उच्चै:श्रवा अश्व, 5.ऐरावत हाथी, 6.शेषनाग-वासुकि, 7.रीझ मानव, 8.वानर मानव, 9.येति, 10.मकर।
६.....10 देवीय वस्तुएं : 1.कल्पवृक्ष, 2.अक्षयपात्र, 3.कर्ण के कवच कुंडल, 4.दिव्य धनुष और तरकश, 5.पारस मणि, 6.अश्वत्थामा की मणि, 7.स्यंमतक मणि, 8.पांचजन्य शंख, 9.कौस्तुभ मणि और संजीवनी बूटी।
७....10 पवित्र पेय : 1.चरणामृत, 2.पंचामृत, 3.पंचगव्य, 4.सोमरस, 5.अमृत, 6.तुलसी रस, 7.खीर,8.प्रातः स्मरणीय नदी का जल 9.आंवला रस10.घृत कुमारी
८....10 महाविद्या : 1.काली, 2.तारा, 3.त्रिपुरसुंदरी, 4. भुवनेश्‍वरी, 5.छिन्नमस्ता, 6.त्रिपुरभैरवी, 7.धूमावती, 8.बगलामुखी, 9.मातंगी और 10.कमला।
९....10 उत्सव : नवसंवत्सर, मकर संक्रांति, वसंत पंचमी, पोंगल, होली, दीपावली, रामनवमी, कृष्ण जन्माष्‍टमी, महाशिवरात्री और नवरात्रि।
१०...10 बाल पुस्तकें : 1.पंचतंत्र, 2.हितोपदेश, 3.जातक कथाएं, 4.उपनिषद कथाएं, 5.वेताल पच्चिसी, 6.कथासरित्सागर, 7.सिंहासन बत्तीसी, 8.तेनालीराम, 9.शुकसप्तति, 10.बाल कहानी संग्रह।
११....10 पूजा : गंगा दशहरा, आंवला नवमी पूजा, वट सावित्री, तुलसी विवाह पूजा, शीतलाष्टमी, गोवर्धन पूजा, हरतालिका तिज, दुर्गा पूजा, भैरव पूजा और छठ पूजा।
१२...10 धार्मिक स्थल : 12 ज्योतिर्लिंग, 51 शक्तिपीठ, 4 धाम, 7 पुरी, 7 नगरी, 4 मठ, आश्रम, 10 समाधि स्थल, 5 सरोवर, 10 पर्वत और 10 गुफाएं।
१३..10 पूजा के फूल : आंकड़ा, गेंदा, पारिजात, चंपा, कमल, गुलाब, चमेली, गुड़हल, कनेर, और रजनीगंधा।
१४...10 धार्मिक सुगंध : गुग्गुल, चंदन, गुलाब, केसर, कर्पूर, अष्टगंथ, गुढ़-घी, समिधा, मेहंदी, चमेली।
१५...10 यम-नियम :1.अहिंसा, 2.सत्य, 3.अस्तेय 4.ब्रह्मचर्य और 5.अपरिग्रह। 6.शौच 7.संतोष, 8.तप, 9.स्वाध्याय और 10.ईश्वर-प्रणिधान।
१६...10 सिद्धांत :
1.
एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति (एक ही ईश्‍वर है दूसरा नहीं), 2.आत्मा अमर है,
3.
पुनर्जन्म होता है,
4.
मोक्ष ही जीवन का लक्ष्य है, 5.कर्म का प्रभाव होता है, जिसमें से ‍कुछ प्रारब्ध रूप में होते हैं इसीलिए कर्म ही भाग्य है, 6.संस्कारबद्ध जीवन ही जीवन है,
7.
ब्रह्मांड अनित्य और परिवर्तनशील है,
8.
संध्यावंदन-ध्यान ही सत्य है, 9. वेदपाठ और यज्ञकर्म ही धर्म है,
10.
दान ही पुण्य है।

Tuesday, March 24, 2020

धर्मानुबन्धनम्


धर्मानुबन्धनम्
                    भगवान् का प्रत्येक अवतार सामान्य-धर्म का उद्धार करने के लिए होता है , किन्तु इन्ही अवतारों में भी कहीं-कहीं सामान्य-धर्म के विरुद्ध विशेष-धर्म का भी आश्रय लेते हैं , जो सामान्य-धर्म के विपरीत दिखाई देता है ।
                    वह विशेष-धर्म सामान्य धर्मशास्त्र की दृष्टि से पाप होने पर भी धर्मानुबन्धित होने से उसे धर्म ही कहना चाहिये , क्योंकि उस धर्म के पथ का अनुसरण करने से जीव का कल्याण होता है ।
जैसे भगवान् राम ने गौ-ब्राह्मण-देवता-सन्त की रक्षा के लिए अवतार लिया , यह संस्कृत तथा भाषा की अनेक रामायणों से सिद्ध होता है ।
                      किन्तु उसी ब्राह्मण धर्म के विपरीत कर्म करने वाले सोमयाजी वेद के महाविद्वान् महाब्राह्मण रावण की परिवार सहित हत्या करके अनेकों ऋषियों के धर्म की रक्षा की ।
जैसे भगवान् श्रीकृष्ण ने युद्ध में शस्त्र न धारण करने की प्रतिज्ञा करके भी अपने भक्त अर्जुन की रक्षा के लिए तथा भीष्म के प्रतिज्ञा की रक्षा के लिए अपनी प्रतिज्ञा तोड़कर भी सुदर्शन चक्र धारण कर लिया ।
                      सामान्य-धर्म किसी पतिव्रता स्त्री के धर्म को नष्ट करने को महापाप मानता है , किन्तु जब उसी महासती के पतिव्रत-धर्म के प्रभाव से भगवान् शंकर के हाथों से भी उसका पति नहीं मारा जा सका , और वह इसीके प्रभाव से प्रतिदिन हजारों स्त्रियों का शीलभंग करता था ।
तब शिवजी की प्रार्थना से महाविष्णु ने करोड़ों सतियों के सतीत्व की रक्षा के लिए सामान्य-धर्म के विरुद्ध माया से उसके पति जलन्धर का रूप धारण करके तुलसी का शीलभंग किया व करोड़ों सतियों के सतीत्व की रक्षा की ।
                     अतः भगवान् के द्वारा अधर्म के समान भासमान होने पर भी धर्मानुबन्धित होने से यह विशेष-धर्म है , क्योंकि यह धर्म मात्र की रक्षा के उद्देश्य से किया ।
                    धर्मानुबन्धित = धर्म से सम्बन्धित सर्वसाधारण की दृष्टि में अधर्म होने पर भी जो धर्म हो ।
                                            "अर्थमर्थानुबन्धं च कामं कमानुबन्धनम् ।
                                             धर्म धर्मानुबन्धं च व्यवस्यति स बुद्धिमान् ।।"
                   धन वही है जो धन से सम्बन्धित हो , काम वही है जो काम से सम्बन्धित हो , धर्म वही है जो धर्म से सम्बन्धित हो --- जो ऐसा मानता है वही बुद्धिमान है ।

Monday, March 23, 2020

शिव, शंकर, महादेव एवं महेश्वर का अर्थ


शिव, शंकर, महादेव एवं महेश्वर का अर्थ

शिरिति मङंगलार्थं वकारो दातृवाचकः।    

मङंगलानां प्रदाता यः शिवः परिकीर्तितः।।

नराणां संततं विश्वे शं कल्याणं करोति यः। 

 कल्याणं मोक्षवचनं एवं शंकरः स्मृतः।। 

ब्रह्मादीनां सुराणां मुनीनां वेदवादिनाम्।

 तेषां महतां देवो महादेवः प्रकीर्तितः।। 

महती पूजिता विश्वे मूलप्रकृतिरीश्वरी।

तस्या देवः पूजितश्च महादेवः स्मृतः।। 

विश्वस्थानां सर्वेषां महतामीश्वरः स्वयम्।

महेश्वरं तेनेमं प्रवदन्ति मनीषिणः।।

(ब्रह्मवैवर्त महापुराण प्रकृतिखण्ड अध्याय 56 श्लोक 63-67)

                        अर्थात् -   शियह मंगलवाचक है और कार का अर्थ है दाता। जो मंगलदाता है, वही ' ' शिव ' ' कहा गया है। जो विश्व के मनुष्यों का सदा शंअर्थात् कल्याण करते हैं, वे ही ' ' ' शंकर ' ' कहे गये हैं। शंकर का अर्थ है ' ' शं करोतु' ' शं का अर्थ है ' ' कल्याण' ' इस तरह शं करोतु का अर्थ हुआ ' ' कल्याण करने वाला। शंकर का अर्थ है ' ' कल्याण करने वाला' ' कल्याण का तात्पर्य यहाँ मोक्ष से है। ब्रह्मा आदि देवता तथा वेदवादी मुनिये महान् कहे गये हैं। उन महान् पुरुषों के जो देवता हैं, उन्हें ' ' महादेव' ' कहते हैं। सम्पूर्ण विश्व में पूजित मूलप्रकृति परमेश्वरी को महती देवी कहा गया है। उस महादेवी के द्वारा पूजित देवता का नाम महादेव है। विश्व में स्थित जितने महान् हैं, उन सबके वे ईश्वर हैं। इसलिये मनीषी पुरुष इन्हें ' ' महेश्वर' ' कहते हैं।

 


जाति या वर्ण की व्यवस्था इस प्रकार समझें

 साइंस पढ़े हुए लोग जाति या वर्ण की व्यवस्था इस प्रकार समझें कि जैसे स्वर्ण, रजत और ताम्र आदि 3 धातु 3 गुण सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण हैं। अब 3...