Thursday, July 2, 2020

शास्त्र वाक्य ही अनुकरणीय है।


1- जो केवल अपने लिए ही भोजन बनाता है;जो केवल काम सुख के लिए ही मैथुन करता है;जो केवल आजीविका प्राप्ति के लिए ही पढाई करता है;उसका जीवन निष्फल है(लघुव्यास संहिता)
2---जिस कुल में स्त्री से पति और पति से स्त्री संतुष्ट रहती है;उस कुल में सर्वदा मंगल होता है(मनुस्मृति)
3---राजा प्रजा के ;गुरू शिष्य के ;पति पत्नी के तथा पिता पुत्र के पुण्य-पाप का छठा अंश प्राप्त कर लेता है(पद्मपुराण)
4---मनुष्य को प्रयत्नपूर्वक स्त्री की रक्षा करनी चाहिएँ! स्त्री की रक्षा होने से सन्तान;आचरण;कुल;आत्मा;औऱ धर्म ---इन सबकी रक्षा होती है(मनुस्मृति)
5--- पिता की मृत्यु हो जाने पर बड़े भाई को ही पिता के समान समझना चाहिए(गरूड़पुराण)
6---अपने पुत्र से भी बढकर दौहित्र;भानजा व भाई का पालन करना चाहिएं; और अपनी पुत्री से बढकर भाई की स्त्री; पुत्रवधु और बहन का पालन करना चाहिएं(शुक्रनीति)
7---नौकर या पुत्र के सिवाय किसी दूसरे के हाथ से करवाया गया दानादि का छठा अंश दूसरे को मिल जाता है(पद्मपुराण)
8---जो दूसरों की धरोहर हड़प लेते हैं;रत्नादि की चोरी करते हैं;पितरों का श्राद्धकर्म छोड़ देते हैं; उनके वंश की वृद्धि नहीं होती(ब्रह्मपुराण)
9---अष्टमी;चतुर्दशी;अमावस्या;पूर्णिमा और सूर्य की संक्रान्ति ---इन दिनों मे स्त्री संग करने वाले को नीच योनि तथा नरकों की प्राप्ति होती है(महाभारत)
10---रजस्वला स्त्री के साथ सहवास करने वाले पुरूष को ब्रह्महत्या लगती है और वह नरकों में जाता है(ब्रह्मवैवर्तपुराण)
11---गृहस्थ को माता-पिता;अतिथि और धनी पुरूष के साथ विवाद नहीं करना चाहिए(गरूड़पुराण)
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साधक के लिए सदा शास्त्र वाक्य ही अनुकरणीय है।
जो साधना ही नहीं करना चाहते हो उनके लिए कुछ भी वर्जित नही है
उनके लिए तो मात्र शरीर ही सब कुछ है
और जिनके लिए शरीर रक्षण ही सर्वोपरि हो वह आत्म कल्याण के लिए कभी आत्म रक्षण का मार्ग क्यों स्वीकार करेंगे
शास्त्र वाक्य सिद्ध करने की आवश्यकता ही नहीं
आप उसके नियमो का पालन करिये
वह अपने आप में स्वतः सिद्ध है।
यदि मुझे अपने स्वधर्म का ज्ञान है
तो स्वभावतः वह स्वधर्म मुझे भक्ष्य -अभक्ष्य को ग्रहण करने न करने का ज्ञान स्वतः करा देगा
तभी हम अपने स्वधर्म को निष्ठा पूर्वक पालन कर सकेंगे अन्यथा सदा भ्रमित ही रहेंगे।


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