*मासिक धर्म क्यों?*
आजकल के बुद्धिजीवी हर परंपरागत बात का विरोध करना ही महानता और अक्लमंदी समझते है। जैसे सुव्वरो को विष्टा का पहाड़ मिल जाए, और प्रसन्न हो जाते है, वैसे ही इन बुध्दि के हिमालयों को स्त्री या शूद्र से संबंधित कोई भी बात मिल जाए तो टूट पड़ते है।
◆धारणात् धर्म:
धारण किया जाता है, इसलिए धर्म है। स्त्रियोंको पक्वता प्राप्त होने पर रजोदर्शन होता है। यानी पक्वता को धारण तब करती है। ये जो साइकल है वह हर माह (मास) में आता है, तभी उसे *मासिक धर्म* कहा जाता है। धर्म धारण करने का उपलक्षण है। अब मूर्ख धर्म को केवल मजहब या religion समझते है, और जो भी चाहे बकवास करते है।
◆केवल सनातन धार में ही नही, ईसाई और इस्लाम मे भी इस अवस्था मे कुछ कार्य निषिद्ध माने गए है। पर, जिन्हें बकना हैं वे शास्त्र तो पढ़ते नहीं।
◆इसी रक्त से बालक जन्मा है तो वह अपवित्र कैसे??
अब हमें यह बताइए क्या मल-मूत्र किसी और से बनता है कि खाये हुए अन्न से??
तो ये बुद्धि के उपासक कल से स्वयं को सुव्वर से जोड़कर वही खाना शुरू कर दे तो!!!
◆मासिकधर्म के समय उसे सहानुभूति प्रेम चाहिए ।
मूर्खो कब उस समय किसी ने धुत्कारा?? बल्कि आराम दिया। अरे, प्रथम बार रजोदर्शन होने पर उसे पौष्टिक आहार और मिठाई खिलाते है, उत्सव मनाते है, शुद्धि के बाद उपहार देते है, पूजन करते है। पर जिसे केवल त्रुटियाँ गिनना है, उसकी आंख पर पट्टी बंधी रहती है।
◆छूना क्यों नही? ये भेदभाव क्यों?
अभी कोरोना वायरस का संक्रमण हुआ तब क्यो संक्रमित से दूर भागते हो?? वहाँ तो छुआ छूत मानते हो?
यदि रजस्वला का रज विशुध्द रक्त है, तो उसे संग्रह कर रक्त की कमी वाले को दो। दे सकते है?? उसका उपयोग कर सकते है?? यदि नही तो बकवास बन्द करो।
HIV से संक्रमण होने पर रखते हो शारीरिक संबंध क्या उस व्यक्ति से?? क्यों तब तो छुआ छूत मानते हो ।
मतलब संसर्ग से दोषों, गुणों, आदतों, रोग का आदान प्रदान होता ही है। तब जब निश्चित समय के लिए शौच को क्यों नही मानना???
◆उस समय स्त्री दोषी नही, दूषित है। दोष का भी मार्जन हो सकता है, तो अशुद्धि का तो हो ही सकता है। अशुद्ध तो कोई भी हो सकता है। मलद्वार साफ कर , उसी हाथ से खा लेते हो कि धोते हो? जो हाथ धोना या शुद्ध करना शुद्धि का एक अंग है, हाथ के साथ भेदभाव नही। तो फिर रजस्वला के साथ भेदभाव कैसे हो गया??
◆स्त्रियो की उस समय शारीरिक एवं मानसिक स्थिति को देखते हुए, भविष्य में होनेवाले रोग से बचने हेतु 3 दीन आराम और शुद्धि का विधान किया है।
स्त्रियों की जितनी चिंता सनातन धर्म मे की गई है, क्वचित कहीं और हुई है।
◆ कुछ बुद्धिजीवी हमे सिखाते है कि वह तो वैज्ञानिक है, अरे अवैज्ञानिक तो तुम मूढ़ जन हो जो शास्त्र को अवैज्ञानिक समझने की चेष्टा करते हो। पेस्टिसाइड का उपयोग फल या शाक-भाजी को दूषित करता है। फिर हम उसे स्वच्छ कर खाते है, तो उसमें भेदभाव है कि सावधानी???
विज्ञान की बातों को शास्त्रीय कहा जाता है । जब सोनोग्राफी का अस्तित्व नही था, तब भी ऋषियो ने गर्भ के दिवस , महीने, के विकास के बारे में कहा। अक्ल के अंधे आंखे खोलो। शास्त्र पढ़ना तो अगले जन्म में भाग्य होगा तो मिलेगा, कम से कम शास्त्र आज्ञा को समझो।
विज्ञान सभर सनातन धर्म मे हर एक प्रश्न का उत्तर है। आवश्यकता है कि समझे।
No comments:
Post a Comment